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अपवाद


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मैं 2022 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ l घर में उल्लास इतना था कि मैं कॉलेज में प्रवेश लेने पूरे परिवार के साथ आया। वह पहली और आखिरी बार था जब मेरे माता पिता मुझे कॉलेज छोड़ने आये थे। पर हमारे सफ़र का उत्साह तब फीका पड़ गया जब कैब ड्राइवर से पापा की बहस हो गई। वह शकूर बस्ती से आईआईटी तक छोड़ने के लिए हमसे 700 रुपए मांग रहा था। तब तक मुझे ओला/ ऊबर की जानकारी नहीं थी। मैं एक माध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखता हूं और मेरा बचपन भी ऐसे क्षेत्र में गुज़रा जो सरलता से भरा था। मुझमें महत्त्वाकांक्षाएँ थी, पर महत्त्वाकांक्षा सबका उदार करने की थी। उपभोक्ता मेरे जीवन का तर्क नहीं था, और समस्या यह हुई कि आई आई टी प्रवेश की मूल प्रेरणा उपभोक्ता से मिलती है। मैं इस सच से वाक़िफ़ ना रह कर बस अस्पष्टता से प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था। मैं इस भ्रम में था की यह सपना मेरा स्वयं का है, परंतु यह सपने का पूंजीवादी कोचिंग संस्थाओं द्वारा विक्रय हुआ था, जिनको मध्यम वर्गीय परिवारों को सफ़लता का वादा देना बहुत आसान प्रतीत होता है। गरीब को भी दिलासों की ज़रूरत रहती है; क्योंकि झूठ के अंधकार में नींद बहुत गहरी आती है। ख़ैर, इस पूंजीवाद से कुछ प्रतिभावान छात्रों का प्रतिवर्ष लाभ भी होता है, मेरा भी हुआ।


परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर मुझसे समाज को एक उम्मीद जगी कि मैं अपने परिवार की गरीबी मिटाने वाला हूं। पर कौनसी गरीबी? मेरे माता पिता ने जब मुझे कभी हमारी आर्थिक स्थिति के बारे में ज्ञात होने ही नही दिया, मैं जो भी चाहता था मुझे प्राप्त हो जाता था, फिर यह किस गरीबी की बात कर रहे हैं? अभी मेरे जीवन में एक खेल होने वाला था, सच से सामना, जिसकी शुरूआत मेरे कमरे से ही होने वाली थी।

मेरा पहला मित्र जो मेरे साथ पहले वर्ष एक कमरे में रहने वाला था, उसका घर बंबई में था। मैं प्रसन्न हुआ, सोचा उससे बंबई शहर के स्मारकों के बारे में, रहन सहन के बारे में रोचक जानकारी लूंगा। मैं गया था बंबई शहर एक बार, पर हम ताज होटल के अंदर नहीं जा पाए थे, वहां चाय भी 500 रुपए की मिल रही थी, इतने में तो हम पूरे दिन का खाना खा सकते थे। अब मैं अपने मित्र से ताज होटल के बारे में पूछूंगा, वहां की तस्वीरें भी देखूंगा, पर मैं अपने मित्र को कैसे बताऊं कि मैं बंबई आकर भी ताज नहीं देख पाया ? क्या यह सुनकर वो मुझसे मित्रता रखना भी चाहेगा?


उसका सामान मुझसे कई ज्यादा था, उसकी बोल चाल मुझसे अलग थी, उसके माता पिता और छोटा भाई उसको फ्लाईट से दिल्ली छोड़ने आए थे, उसका दक्षिण दिल्ली में एक और घर भी था, जहां से उसकी नानी उसके लिए बहुत सारा खाना भेजती थीं । एक दिन उसके जूते फट गए थे, मैं सोच रहा था अब वो सिलाई कैसे करवाएगा। उसको शाम को गाड़ी से ड्राइवर घर लेने आते हैं, उसको नए जूते दिलाते हैं, और मेरा मित्र रविवार के लिए अपने दूसरे घर चला जाता है।


मुझे मेरे घर से सब मिल रहा था, इस बात पर मुझे संदेह होने लगा। मुझे अपने क्षेत्र पर नाज़ नही रहा, मैंने एक मित्र को अपना घर का पता बताया तो उन्होंने कहा मैं टियर फॉर सिटी में रहता हूं। घर जाके इंटरनेट पर फोर्थ टियर सिटी के बारे में ढूंढा। चौथे स्तर का शहर वह छोटा शहरी केंद्र होता है जहाँ कम जनसंख्या, सीमित आर्थिक विकास और बुनियादी सुविधाएँ अपेक्षाकृत कम विकसित होती हैं। मुझे यह पढ़कर अफ़सोस हुआ और मैं अपनी पहचान छुपाने लगा। मुझे अपने बोलने पर, अपने पहनावे पर आशंका होने लगी। जो बुलबुला मेरे माता पिता ने मुझे तैयार बनाकर दिया था, वो अब फूटने लगा। मेरा सच से सामना हो रहा था। मेरा जीवन जीने का दृष्टिकोण बदल रहा था। इन घटनाओं से मुझे यह भली भांति समझ आ गया था कि व्यक्तिगत अनुभवों में विषमताएं होती हैं।  यही विषमताएं व्यक्तिगत क्षमता पर भी प्रभाव डालती हैं। जिस विद्यार्थी का पूरा जीवन आर्थिक तंगी में गुज़रा हो उसके मायने रईस वर्ग के बराबर नहीं रखे जा सकते। परंतु यहां आकर मैं अपना दम घोटकर यह अनुचित प्रतिस्पर्धा में लड़ रहा था। मैं समान रैंक प्राप्त कर टियर फॉर सिटी से यहां आकर अपूर्ण महसूस कर रहा था और इंपोस्टर सिंड्रोम का शिकार हो रहा था। मुझे इस संस्थान का हिस्सा बन पाना एक अपवाद लग रहा था।


मुझे तीसरा और आखिरी झटका न्यू ईयर की रात को लगा, जब मैं बहुत उत्सुक होकर कमरे में अपने मित्र का इंतज़ार कर रहा था। सोच रहा था नए वर्ष की शुरुआत मैं उसके साथ करूंगा। रात के 12 बजने में ज़्यादा वक्त नहीं बचा था पर वह कमरे में नहीं लौटा था। विंग के किसी कमरे में कोई नहीं दिखाई दे रहा था। मैंने बेचैन होकर अपने मित्र को कॉल किया और कमरे में बुलाया। उसने बताया कि वो अपने ग्रुप के साथ फार्म हाउस में न्यू ईयर मनाने गया है। मैंने जब उससे पूछा कि उसने मुझे आमंत्रित क्यों नहीं किया तो उसका जवाब था कि, “ तुम यहां असहज महसूस करते, और तुम्हारे मम्मा पापा भी रात भर बाहर रुकने की आज्ञा नहीं देते।” गानों के शोर की वजह से उसने कॉल कट कर दिया। 12 बज गए थे, नया वर्ष शुरू हो गया था और पटाखे फूटने लगे थे। मैं नव वर्ष पर बिल्कुल अकेला था। खुद को बहलाने के लिए मैंने डोमिनोज़ से पिज़्ज़ा ऑर्डर किया। साल के पहले दिन की ट्रैफिक की वजह से पिज़्ज़ा दो घंटों में पहुंचा। मुरझाए हुए मन से खाना खत्म कर मैं सोने चला गया। 


लेखक - ध्रुव जैन

डिज़ाइन - हिमेश रुस्तगी

 
 
 

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